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Updated: May 8, 2023

बच्चों के प्रति वयस्कों की धारणा (बाल्यकाल) - इसे पढ़ने के लिये 50 रु शुल्क का भुगतान करके सब्सक्राइब कर लें तभी आप हमारे DECE Course से सबंधित सभी ब्लॉग पढ़ पायेंगे।


यह जरूरी नहीं है कि बच्चों की क्षमता के बारे में हम वयस्क जो धारणा रखें वो धारणाएँ

हमेशा सटीक हो। अक्सर समाज में हम समझते है कि बच्चों को अपने आसपास होने वाली घटनाओं की जानकारी नहीं होती है और वह उन घटनाओं को समझ भी नहीं पाते।



यह भी समझा जाता है कि बच्चे जब बोलना शुरू करते हैं तभी वह सोना व समझना शुरू करते हैं। यह धारणाएँ गलत है।



हम जानते हैं कि शिशु बोलना शुरू करने से पहले बहुत शब्द समझ सकते हैं। एक ओर तो ऐसे लोग हैं जो बच्चों से यह अपेक्षा रखते हैं कि वे छोटे-मोटे काम और अपनी देखभाल स्वयं करें और वयस्कों के भावनात्मक सहारे के बिना ही स्कूल जाना शुरू कर दें।


दूसरी ओर कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि बच्चे भोले-भाले और अनजान होते हैं, आसपास घटित होने वाली घटनाओं को समझ पाने में असमर्थ होते हैं, अतः कोई भी सौंपा गया कार्य ठीक तरह से नहीं कर सकते। वयस्कों की यह धारणा कि बचपन में कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं घटता है, भी गलत है।



बच्चे भी व्यस्कों की तरह विचार और भावनाएँ होती हैं। अंतर केवल इतना है कि बच्चों के सोचने का ढंग और भावनाओं को व्यक्त करने का ढंग भिन्न होते हैं। जिस प्रकार माता-पिता नवजात शिशु को गोदी में उठाते हैं और उसकी देखभाल करते हैं, उससे शिशु को अपने प्रति माता-पिता के स्नेह व प्यार की भावनाओं का एहसास हो जाता है।


एक आठ महीने की बालिका बोल नहीं सकती फिर भी उसे यह समझ आ जाता है कि उसे डाँटा जा रहा है या प्यार से कुछ कहा जा रहा है। वह कई वाक्य, जैसे कि 'यह मुझे दो', 'नहीं, ऐसा मत करो, ' समझती है और उन पर प्रतिक्रिया करती है।


अगर दस मास की बालिका के साथ लुक्का-छिप्पी का खेल खेला जाए तो वह भी उसमें हिस्सा लेती है और छिपे हुए व्यक्ति को ढूँढ़ने की कोशिश करती है यानि कि वह समझती है कि व्यक्ति यहीं आसपास है।


इन सब से यह ज्ञात होता है कि बालिका में विचार-शक्ति हैं हमें शिशु की उपर्युक्त उपलब्धियाँ शायद बहुत ही साधारण सी जिसने अभी चलना सीखा ही है तो हम देखेंगे कि वह कितने मजे से पूरे घर में चलती है और गिरने पर स्वयं उठकर पुनः चलने लगती है।


आपने देखा होगा कि वह पूरे विश्वास के साथ कुछ कदम उठाती है और फिर आश्वासन के लिए पीछे मुड़कर माँ को देखती है। इन् घटनाओं में बच्चों की सीखने व विकास की प्रक्रिया देखने को मिलती है।

बाल्यावस्था ही वह समय है जब बच्चे अन्य लोगों के साथ संबंध स्थापित करना सीखते हैं।


सबसे पहले वे माता-पिता, फिर परिवार के अन्य सदस्यों और बाद में अन्य वयस्कों और बच्चों के साथ संबंध स्थापित करते हैं। इसके लिए आत्मविश्वास और साहस की आवश्यकता होती है।

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